खाना हमारे शरीर के विकास के लिए कितना जरूरी है इस बारे में हम सभी अच्छे से जानते हैं। लेकिन काफी बार आहार हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी बन जाता है। खाने की वजह से कई शारीरिक समस्याएँ हो जाती है जिसमे फूड पॉइजनिंग सबसे आम और सबसे गंभीर समस्या है। सभी इस बारे में जानते हैं कि फूड पॉइजनिंग एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसके बारे में लोगो को बहुत कम जानकारी है। अगर आप खुद को फूड पॉइजनिंग के खतरे से दूर रखना चाहते हैं तो आपको इसके लिए यह लेख आखिर तक पूरा पढ़ना चाहिए और फूड पॉइजनिंग से जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
फूड पॉइजनिंग क्या है? What is Food Poisoning?
फूड पाइजनिंग पेट से संबंधित एक संक्रमण है जो कि स्टैफिलोकोकस नामक बैक्टीरिया, वायरस या अन्य जीवाणुओं के चलते हो सकता है। यह बैक्टीरिया, वायरस या अन्य जीवाणु हमारे खाने के साथ पेट में चले जाते हैं जिसकी वजह से फूड पाइजनिंग जैसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है। खाने के अलावा गंदा पानी पीने, ज्यादा पानी पीने से या कोई अन्य ड्रिंक लेने की वजह से भी फूड पाइजनिंग की समस्या हो जाती है, जिसकी वजह लगातार उल्टियाँ आने जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है।
To Know More about :- Eat Disorder in Hindi
हाँ, फूड पॉइजनिंग की समस्या कई तरह की हो सकती है। लेकिन इसके मुख्य 7 प्रकार है, जिन्हें कई बार कारण की श्रेणी में भी रखा जाता है। फूड पॉइजनिंग के सात मुख्य प्रकार निम्न वर्णित है :-
1. ई. कोलाई E. coli
2.साल्मोनेला Salmonella
3. लिस्टेरिया Listeria
4. ट्रिचिनोसिस Trichinosis
5. स्टेफिलोकोकस Staphylococcus
6. कैम्पिलोबैक्टर Campylobacter
7. क्लोस्ट्रीडियम Clostridium
1. ई. कोलाई E. coli
ई. कोलाई या एस्चेरिचिया कोलाई, एक जीवाणु है जो कि हमेशा से ही मनुष्यों और जानवरों के पाचन तंत्र में रहता है। पाचन तंत्र में पहले से मौजूद ई. कोलाई जीवाणु मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं होता, लेकिन जब यह जीवाणु बाहर से शरीर में प्रवेश करता है तब यह हानिकारक होता है। ई. कोलाई जीवाणु इतना हानिकारक हो सकता है कि इससे मनुष्य की जान तक भी जा सकती है। मनुष्य के अंदर ई. कोलाई जीवाणु तकरीबन पशु या मानव मल के संपर्क में आने से होता है। यह आमतौर पर तब होता है जब दूषित पानी या भोजन का सेवन किया जाता है। खुले खाने पर बैठी मक्खियां ई. कोलाई जीवाणु को सबसे ज्यादा फैलाती है जिससे फ़ूड पॉइजनिंग जैसी गंभीर समस्या हो सकती है।
2. साल्मोनेला Salmonella
साल्मोनेला संक्रमण (Salmonellosis) एक सामान्य जीवाणु रोग है जो कि पाचन तंत्र की आंतों के मार्ग को प्रभावित करता है। साल्मोनेला बैक्टीरिया आमतौर पर जानवरों और मनुष्यों की आंतों में पहले से ही रहते हैं जो कि मल के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन जब दूषित पानी या भोजन के माध्यम से यह जीवाणु वापिस पेट में आता है तो इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है। छोटे बच्चों, वरिष्ट नागरिकों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग साल्मोनेला बैक्टीरिया के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। आमतौर पर, साल्मोनेला संक्रमण वाले लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। लेकिन जब यह संक्रमण गंभीर होता है तो संक्रमित को 72 घंटों के भीतर दस्त, बुखार और पेट में ऐंठन जैसी समस्याएँ हो सकती है। अधिकांश स्वस्थ लोग विशिष्ट उपचार के बिना कुछ दिनों के भीतर ठीक हो जाते हैं। काफी बार साल्मोनेला संक्रमण कारण रोगी को दस्त की वजह से गंभीर निर्जलीकरण का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, यदि संक्रमण रोगी की आंतों से परे फैलने लगता है तो रोगी को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिनकी वजह से रोगी की मृत्यु तक भी हो सकती है।
3. लिस्टेरिया Listeria
लिस्टेरिया मोनोसाइटोजेन्स बैक्टीरिया है जो कि तेजी से फ़ूड पॉइजनिंग का कारण बनता है। इस जीवाणु से संक्रमण होने पर रोगी को बुखार, मांसपेशियों में दर्द और कई लोगों में दस्त की समस्या हो सकती है। गंभीर संक्रमण से सिरदर्द, दिमागी बुखार, आक्षेप (convulsions) और मृत्यु हो सकती है। लिस्टेरिया बैक्टीरिया मिट्टी, पानी, धूल, जानवरों के मल और अन्य पदार्थों में रह सकता है। लिस्टेरिया संक्रमण से स्वस्थ लोग बहुत कम बीमार पड़ते हैं, लेकिन गर्भवती महिलाएं, बच्चे, वृद्धों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वालों के लिए यह संक्रमण गंभीर हो सकता है।
4. ट्रिचिनोसिस Trichinosis
ट्राइकिनोसिस एक राउंडवॉर्म जीवाणु है जो कि दुसरे के शरीर में प्रजनन करता है। यह जीवाणु आमतौर पर मांस खाने वाले जानवरों में पाया जाता है। इन जानवरों में सूअर, मुर्गा, वालरस, लोमड़ी, भालू, और जंगली सूअर शामिल है। अगर इन जानवरों का कच्चा या अधपका मांस खा लिए जाए यह जीवाणु व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह जीवाणु पूर्ण विकसित और अंडे के रूप में व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर सकता है, जिससे यह आँतों में रहकर विकसित होता है, जिससे व्यक्ति को कई गंभीर सस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो लोग सूअर का मांस ज्यादा खाते हैं उन्हें इस जीवाणु से ज्यादा खतरा होता है, वहीं बहुत ही कम लोगो को इस बारे में जानकारी है कि सूअर मनुष्य की भांति ही शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होते हैं।
5. स्टेफिलोकोकस Staphylococcus
स्टैफिलोकोकस ऑरियस एक प्रकार का रोगाणु है जो लगभग 30% लोगों और जानवरों की नाक के अंदर और लोगों की त्वचा पर होता है। ज्यादातर समय, स्टाफ कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है; हालांकि, कभी-कभी स्टैफ संक्रमण का कारण बनता है। लेकिन अगर यह रोगाणु खाने या पानी के साथ पेट में चला जाए तो इससे एक से छः घंटे के भीतर शारीरिक समस्याएँ होना शुरू हो जाती है जो कि अपने आप दो से तीन दिनों में ठीक हो जाती है। यह संक्रमण भले ही हमारी नाक और त्वचा पर होता है लेकिन यह एक से दुसरे व्यक्ति पर नहीं फैलता। इसकी वजह से व्यक्ति को फूड पॉइजनिंग के अलावा, पेट और शरीर में गर्मी, सूजन, और त्वचा संबंधित समस्याएँ हो सकती है।
6. कैम्पिलोबैक्टर Campylobacter
कैम्पिलोबैक्टीरियोसिस, कैम्पिलोबैक्टर बैक्टीरिया के कारण होने वाला एक संक्रमण है जो कि दूषित पानी और दूषित खाने की वजह से होता है। कैम्पिलोबैक्टीरियोसिस संक्रमण होने की वजह से व्यक्ति को दस्त, अपच और उल्टियाँ आने की समस्या हो सकती है। यह फूड पॉइज़निंग होने के सबसे बड़े कारणों में से एक है। यह संक्रमण अपने आप भी ठीक हो जाता है, लेकिन गंभीर होने पर इसके लिए चिकत्सक से बात करना काफी जरूरी होता है।
7. क्लोस्ट्रीडियम Clostridium
क्लोस्ट्रीडियम एक ऐसा जीवाणु है जो कि मनुष्य और जानवरों के पाचन तंत्र में होता है। कम मात्रा में यह हमारे लिए हानिकारक नहीं होता, लेकिन इसकी शरीर में मात्रा बढ़ने के कारण यह पेट से जुड़ी समस्याओं का कारण बनता है। इसकी वजह से पाचन तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित होता है और इससे पेट दर्द से लेकर पेट में सूजन जैसी समस्या भी हो सकती है। इस संक्रमण का खतरा माँसाहारी व्यक्तियों को ज्यादा रहता है, इससे बचने के लिए पूरी तरह से पका हुआ मांस ही खाना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति फूड पॉइजनिंग की गंभीर समस्या से जूझता है तो उसे पाचन के साथ-साथ अन्य कई शारीरिक समस्याएँ हो सकती है जो कि निम्नलिखित है :-
उपरोक्त बताए गये लक्षणों के अलावा फूड पॉइजनिंग गंभीर होने पर रोगी में सामान्य लक्षणों के साथ-साथ निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं :-
यदि आप इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। वहीं, हर रोगी में दुसरे रोगी से भिन्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं, क्योंकि दुसरे रोगी में फूड पॉइजनिंग होने का कारण भिन्न हो सकता है।
फूड पॉइजनिंग होने के सामान्य कारणों के आलावा इस गंभीर समस्या के होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं लेकिन हम इसे मुख्य तौर पर तीन हिस्सों में विभाजित कर सकते हैं, जिसमे : बैक्टीरिया, परजीवी (Parasites) और वायरस शामिल है। हम ऊपर बैक्टीरिया के कारण होने वाली फूड पॉइजनिंग के बारे में बात कर चुके हैं जिसे फूड पॉइजनिंग के प्रकार के रूप में भी जाना जाता है। अन्य कारणों के अलावा बैक्टीरिया की वजह से होने वाली फूड पॉइजनिंग की समस्या सबसे ज्यादा गंभीर होती है। चलिए अब फूड पॉइजनिंग के बाकी के कारणों के बारे में जानते हैं।
परजीवी (Parasites) :- फूड पॉइजनिंग पैरासाइट यानि परजीवी की वजह से भी हो सकती है, हालाँकि यह काफी दुर्लभ होता है। यह मुख्यतौर पर दूषित पानी और दूषित भोजन के जरिये हमारे पाचन तंत्र में दाखिल होता है और फिर उससे फूड पॉइजनिंग जैसी गंभीर समस्या होना शुरू हो जाती है। अगर फल और सब्जियों को ठीक से न धोया जाए तो इस फूड पॉइजनिंग के होने की आशंका ज्यादा बनी रहती है।
वायरस :- फूड पॉइजनिंग की समस्या वायरस के कारण से भी हो सकती है। रोटावायरस, एस्ट्रोवायरस, और हेपेटाइटिस ए वायरस फूड पॉइजनिंग होने के पीछे के मुख्य वायरस है। पैरासाइट की तरह यह भी फूड पॉइजनिंग का एक दुर्लभ कारण है।
फूड पॉइजनिंग होने के सामान्य कारण :-
आमतौर पर फूड पॉइजनिंग की समस्या आहार से जुड़ी सफाई न रखने की वजह से होती है। मुख्य रूप से फूड पॉइजनिंग निम्नलिखित कारणों से होती है :-
किसी भी रोग से छुटकारा पाने का एक ही तरीका है कि आप जल्द से जल्द उसकी पहचान करें और उसका उपचार लेना शुरू करें। अगर आप फूड पॉइजनिंग से जूझ रहे हैं तो आप इसके लिए चिकित्सक से उपचार ले सकते हैं और साथ ही आप निम्नलिखित कुछ उपायों को अपना कर भी इस गंभीर समस्या से जल्द छुटकारा पा सकते हैं :-
नोट :- आहार में कोई भी परिवर्तन करने से पहले या कोई भी औषधि लेने से पहले रोगी अपने चिकत्सक की सलाह जरूर लें।
Mr. Ravi Nirwal is a Medical Content Writer at IJCP Group with over 6 years of experience. He specializes in creating engaging content for the healthcare industry, with a focus on Ayurveda and clinical studies. Ravi has worked with prestigious organizations such as Karma Ayurveda and the IJCP, where he has honed his skills in translating complex medical concepts into accessible content. His commitment to accuracy and his ability to craft compelling narratives make him a sought-after writer in the field.
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