अगर दांत साफ़ हो तो वह आपकी मुस्कान को और भी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। बचपन से ही हम सभी को दांतों को साफ़ रखने की आदत लगा दी जाती है। हमारे साफ़ और मजबूत दांत हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। अगर हमारे दांत साफ़ और मजबूत नहीं होंगे तो एक तरफ जहाँ हमें बदबूदार सांस और मसूड़ों से जुड़ी समस्याएँ तो होंगी ही साथ ही हमें कई अन्य शारीरिक समस्याएँ भी हो सकती हैं, जैसे कि हृदय रोग, कैंसर, संक्रमण, खराब पाचन तंत्र और यहाँ तक कि सेक्स संबंधित समस्याएँ भी। डेंटल और ओरल हेल्थ हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण का एक अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन अक्सर लोग इस ओर कोई ध्यान नहीं देते। तो चलिए इस लेख के जरिये जानते हैं आखिर हमें दांतों से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती है, उनके लक्षण और कारण क्या है और इनसे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?
हमें दांतों से जुड़ी कितनी बीमारियाँ हो सकती है? How many dental diseases can we get?
अगर आप अपने दांतों और ओरल हेल्थ का ध्यान नहीं रखते तो आपको दांतों से जुड़ी कई बीमारियाँ अपनी चपेट में ले सकती है, जिसमें से कुछ को निचे वर्णित किया गया है :-
कैविटी Cavities or Tooth Decay – कैविटी दांतों से जुड़ी सबसे आम बीमारी है जिससे तक़रीबन 10 में से 4 लोग जूझ रहें हैं। कैविटी को दांतों में कीड़ा लगना या दांतों में सड़न भी कहा जाता है। दांतों की यह बीमारी दांतों के उन हिस्सों में शुरू होती है जिन्हें अक्सर ठीक से साफ़ कर पाना मुश्किल होता है। जब आप खाना खाते हैं और उस दौरान जब खाने का कुछ हिस्सा दांतों के बीच साफ जाता है तो वहां से उस हिस्से में सडन होना शुरू हो जाती है। इसके अलावा जो लोग ज्यादा मीठा खाने के शौक़ीन होते हैं, खासकर चॉकलेट उन्हें कैविटी की बीमारी सबसे ज्यादा होती है, इसमें बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। कैविटी होने पर दांत शुरुआत में पीले होना शुरू हो जाते हैं और समय के साथ काले पड़ने लगते हैं और इसी के साथ दांत कमजोर होना शुरू हो जाते हैं और टूटने लगते हैं। इससे बचने के लिए सबसे जरूरी है आप दिन भर में दो बार ब्रश जरूर करें।
मसूड़े की सूजन Gingivitis – मसूड़ों की सूजन को मसूड़ों की बीमारी के रूप में भी जाना जाता है। यह आमतौर पर तक दिखाई देखि है जब कोई व्यक्ति खराब तरीके से ब्रश और फ्लॉसिंग करें। खराब तरीके से ब्रश करने और फ्लॉसिंग करने के कारण मसूड़ों से काफी बार खून आना शुरू हो जाता है जिसकी वजह से मसूड़े सूज जाते हैं। मसूड़ों में आई सूजन के कारण आपके दांत जड़ से कमजोर होना शुरू हो जाते हैं और दांतों से खून आना भी जारी रह सकता है। इसलिए ब्रश और फ्लॉसिंग को हमेशा आराम से ही करना चाहिए। अगर आप पहले से ही मसूड़ों की सूजन से जूझ रहे हैं तो आपको इसका उपचार जल्द से जल्द कर लेना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से आपको पीरियोडोंटाइटिस का सामना करना पड़ सकता है जो कि एक गंभीर संक्रमण है।
पीरियोडोंटाइटिस Periodontitis – पीरियोडोंटाइटिस एक गंभीर मसूड़े का संक्रमण है जो दांतों के नुकसान और अन्य गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं को जन्म दे सकता है। मसूड़ों का यह संक्रमण नरम ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है और अगर इसका उपचार ठीक से न किया जाए तो इसकी वजह से यह संक्रमण आपके दांतों को सहारा देने वाली हड्डी को नष्ट कर सकता है। इतना ही नहीं यह संक्रमण आपके पुरे शरीर में भी फ़ैल सकता है, इसलिए इस संक्रमण की चपेट में आने से बचना चाहिए और चपेट में आने के बाद जल्द से जल्द इसका उपचार शुरू कर देना चाहिए। अगर आप इस संक्रमण से जूझ रहे हैं तो आपको दूसरों के साथ अपना खाना साझा करने से बचना चाहिए और साथ ही ओरल सेक्स से भी बचना चाहिए, क्योंकि इससे आपके साथी को संक्रमण होने की आशंका बन सकती है।
दरार युक्त या टूटे दांत Cracked or Broken Teeth – दांतों में चोट लगने, कुछ कठोर चीज़ चबाने या दांत पीसने की आदत के कारण दाँतों में दरार या दांत टूटने की समस्या हो सकती है। ऐसे में आपको गंभीर दर्द और मुह में सूजन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। यदि आपका दांत टूट गया है या टूट गया है तो आपको तुरंत अपने दंत चिकित्सक के पास जाना चाहिए।
हाइपोडंटिया Hypodantia – हाइपोडंटिया दांतों से जुड़ा एक अनुवांशिक रोग है जिसमे सामने के छः या इससे ज्यादा दांत विकसित नहीं हो पाते। इसकी वजह से सामने के दांतों के बीच में अंतर पाया जाता है।
गर्भावस्था के दौरान मसूड़ों में सूजन Pregnancy Gingivitis – गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में हॉर्मोनल परिवर्तन चलता रहता है और शरीर बच्चे के लिए जगह बनाने के लिए लगातार काम कर रहा होता है जिसके लिए अधिक रक्त प्रवाह की जरूरत होती है। इस रक्त प्रवाह की वजह से मसूड़ों में सूजन आ सकती है। गर्भावस्था के दौरान महिला के मसूड़ों में सूजन एवं खून आने की शिकायत जिसे प्रग्नेंसी जिंजीपाइटिस कहते हैं पाई जाती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को अपने दांतों का चेकअप करवाते रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त अर्थराइटिस, अस्थमा आदि में भी दांतों का खास ध्यान रखना चाहिए। प्रेग्नेंसी की वजह से दांतों से जुड़ी समस्याएं नहीं होती हैं लेकिन इसके कारण स्थिति गंभीर रूप जरूर ले सकती है जो कि बच्चे के जन्म के बाद ठीक हो जाती है।
संवेदनशील दांत Sensitive teeth – अक्सर कुछ भी ठंडा या गर्म खाने या पीने के बाद अक्सर आपको दांतों में झनझनाहट महसूस होती है इसे संवेदनशील दांत या सेंसिटिव तीथ कहा जाता है। दांतों की संवेदनशीलता को "डेंटिन अतिसंवेदनशीलता" भी कहा जाता है। यह कभी-कभी रूट कैनाल या फिलिंग होने के बाद अस्थायी रूप से होता है। इसकी वजह से आपको निम्नलिखित समस्याओं का समाना करना पड़ सकता है :-
मसूड़े के रोग
घटते मसूड़े
दांतों में क्रैक
दांतों के सिरे उबड़-खाबड़ होना
कुछ लोगों के दांत स्वाभाविक रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके दांत सामान्य से ज्यादा पतले होते हैं। संवेदनशील दांतों का उपचार करने के लिए सबसे जरूरी है कि आप उन चीजों से परहेज करें जिनकी वजह से आपको यह समस्या होती है और दूसरा संवेदनशील दांतों के लिए विशेष रूप से तैयार किये गये टूथपेस्ट और माउथवॉश इस्तेमाल करें।
मौखिक कैंसर Oral Cancer – अगर आप लगातार किसी मौखिक समस्या से जूझ रहे हैं और आप उसका उपचार नहीं करवा रहे तो आपको मौखिक कैंसर होने की आशंका बढ़ सकती है। इसके अलावा अगर आप लगातार तंबाकू का सेवन करते हैं तो यह कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है। एक व्यक्ति को निम्नलिखित प्रकार के मौखिक कैंसरों का सामना करना पड़ सकता है :-
मसूड़े
जुबान
होंठ
गाल
मुँह का तल
कठोर और मुलायम तालू
मौखिक कैंसर दन्त रोगों में सबसे बड़ी समस्या है। इससे बचने के लिए आप हमेशा अपने दांतों को साफ़ रखें और समय-समय पर इस विषय में चिकित्सक से सलाह लेते रहें।
डायबिटीज के दौरान दांत कमजोर होना Tooth Loss During Diabetes – मधुमेह होने पर न केवल आपको किडनी संबंधित रोग होने की आशंका बढ़ जाती है बल्कि इसकी वजह से आपको दांतों से जुड़ी समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। जब कोई व्यक्ति मधुमेह से जूझता है तो उस दौरान उसके शरीर में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता प्रभावित हो जाती है, जिसकी वजह से मधुमेह रोगी को मौखिक संक्रमण, मसूड़ों की बीमारी और पीरियोडोंटाइटिस होने का अधिक खतरा होता है। इतना ही नहीं मधुमेह होने पर उन्हें थ्रश (thrush) नामक एक मौखिक कवक संक्रमण (oral fungal infection) का खतरा बढ़ जाता है। इसकी वजह से मधुमेह रोगियों में मसूड़ों में सूजन, दांतों का ढीलापन और मुंह से बदबू आना आदि की समस्या पाई जाती है। इन रोगियों में मुंह की लार में पाए जाने वाले कीटाणु अधिक सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए उनके मसूड़ों और जबड़े की हड्डी में संक्रमण हो जाता है। ऐसे में दांत कमजोर हो जाते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए सबसे जरूरी है कि मधुमेह रोगी अपने रक्त शर्करा स्तर को काबू में रखें और मौखिक सफाई पर ध्यान दें, साथ ही जरूरत पड़ने पर दंत चिकित्सक से संपर्क करें।
पायरिया Pyorrhoea – दरअसल, यह मुंह के स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी बीमारी है, जो मसूड़ों को और दांतों को नुकसान पहुंचा सकती है। पायरिया को मसूड़ों की बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग दांतों को सहारा देने वाले टिश्यू को प्रभावित करता है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो पायरिया रोग बहुत गंभीर हो सकता है, जिससे मसूड़ों की पकड़ दांत से कमजोर हो सकती है और यह टूटकर गिर भी सकते हैं। अक्सर यह समस्या धूम्रपान करने, मधुमेह की समस्या होने, लड़कियों और महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन के कारण, मधुमेह की कुछ दवाओं के कारण जो लार के प्रवाह को कम करती हैं और एड्स जैसी गंभीर बीमारी की वजह से हो सकती है। काफी बार यह अनुवांशिक कारण से भी होती है।
What is Premenstrual Syndrome?
दांतों और मौखिक बीमारियों के क्या लक्षण है? What are the symptoms of dental and oral diseases?
आपको हमेशा अपनी ओरल हेल्थ और दांतों का खास ख्याल रखना चाहिए। साल भर में कम से कम एक बार आपको डेंटिस्ट के पास जाना चाहिए, इसके लिए आपको लक्षण दिखाई देने का इंतजार नहीं करना चाहिए। अगर आप नियमित रूप से अपने दांतों की जांच करवाते हैं तो इससे आपको कभी भी दांतों और मौखिक बीमारी का समाना नहीं करना पड़ेगा। दांतों या मौखिक बीमारियाँ होने पर आपको निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिससे आप इसकी पहचान आसानी से कर सकते हैं :-
मुंह में लगातार छाले होना
मुह में घाव या कोमल क्षेत्र बनना
ब्रश करने या फ्लॉसिंग करने के बाद मसूड़ों से खून आना या सूजन जाना
मुह से लगातार गंदी बदबू आना
गर्म और ठंडी चीज़ खाने या पीने से दांतों में झनझनाहट महसूस
दांत दर्द होना
दांत में कीड़ा पड़ना
दांत लगातार ढीले महसूस होना
मसूड़े घटते नज़र आना
कुछ चबाने या काटने पर दर्द होना
चेहरे और गाल की सूजन आना
जबड़े के किसी एक हिस्से में दर्द होना
दांतों में क्रेक आना
दांत में किरकिराहट होना
बार-बार शुष्क मुँह
यदि इनमें से कोई भी लक्षण तेज बुखार और चेहरे या गर्दन की सूजन के साथ है, तो आपको जल्द से जल्द एक डेंटिस्ट से मिलना चाहिए।
दांतों और मौखिक बीमारियाँ होने के क्या कारण हैं? What are the causes of having dental and oral diseases?
दांतों और मौखिक बीमारियाँ होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं क्योंकि हर दांत और मौखिक बीमारी होने के कारण अलग होते हैं। मुख्य रूप से इसके पीछे निम्नलिखित कारण माने जाते हैं :-
लगातार धूम्रपान करना
तंबाकू का ज्यादा सेवन करना
चुना और पान खाने की आदत
ज्यादा मीठी चीज़े खाने की आदत – खासकर चॉकलेट
ब्रश करने की खराब आदतें
ब्रश न करने की आदत
ज्यादा ठंडी या गर्म चीज़े खाने की आदत
मधुमेह की बीमारी
मुंह में लार की मात्रा को कम करने वाली दवाओं का उपयोग
पारिवारिक इतिहास
कुछ गंभीर संक्रमण, जैसे – एचआईवी या एड्स
महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन
शरीर में एसिड बनना
एसिड के कारण ज्यादा उल्टियाँ आना
गर्भवस्था के कारण
एक परिवार में दांत और मौखिक बीमारियों का खतरा सबसे ज्यादा किसे हैं? Who is most at risk of dental and oral diseases in a family?
एक परिवार के सभी सदस्यों को दांत और मौखिक बीमारियाँ होने का खतरा लगभग बराबर ही होता है। लेकिन उम्र के हिसाब से देखा जाए तो वह निश्चित रूप से बच्चे और वृद्ध लोग है। वृद्ध और बच्चों को दांतों से जुड़ी समस्याओं के अलावा बाकी शारीरिक समस्याएँ होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है।
बच्चे जो कि इस उम्र में ज्यादा मीठा और गैर पौष्टिक आहार का ज्यादा सेवन करते हैं जिसकी वजह से उन्हें कैविटी होने का खतरा ज्यादा रहता है। वहीं कुछ बच्चे ठीक तरीके से ब्रश करना नहीं जानते तो उसकी वजह से मसूड़ों से जुड़ी समस्याएँ होने का खतरा भी बराबर बना रहता है। अपने बच्चे के दांतों को हमेशा स्वस्थ रखने के लिए आप उन्हें डॉक्टर की सलाह से ही टूथपेस्ट इस्तेमाल करने दें। अक्सर देखा गया है कि टूथपेस्ट मीठा होने के कारण काफी बच्चे उन्हें खा लेते हैं तो ऐसे में उन्हें अपनी निगरानी में टूथपेस्ट इस्तेमाल करने दें। बेहतर होगा कि आप शुरुआत में उन्हें ब्रश की जगह ऊँगली का प्रयोग करने दे और अपने बच्चे को सबसे नर्म बालों वाली ही ब्रश इस्तेमाल करने के लिए दें।
वृद्ध लोगों की बात करें तो कमजोर होते शरीर और खाने पीने की गलत आदतों के कारण उन्हें कई डेंटल और ओरल समस्याएँ हो सकती है। शुरुआत से ही दांतों की ठीक से देखभाल ने करने की वजह से भारत में 60 वर्ष की उम्र आते-आते लोगों के दांत टूटना शुरू हो जाते हैं या उन्हें दांतों से जुड़ी अन्य समस्याएँ होना शुरू हो जाती है। भारत के कई हिस्सों में तंबाकू और गुटके का काफी सेवन किया जाता है जिसकी वजह से भी उन्हें कई गंभीर दांतों और मौखिक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। बढ़ती उम्र के साथ वृद्ध लोगों में मसूड़ों की बीमारी, दंत क्षय, मुंह के कैंसर, मुंह में संक्रमण और दांतों के नुकसान जैसी कई गंभीर समस्याएँ हो सकती है। डेंटल और ओरल समस्याओं के बारे में बात करें तो भारत में यह समस्याएँ सबसे ज्यादा पुरुषों में दिखाई देते हैं और इसके पीछे खराब जीवनशैली सबसे बड़ा कारण है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को भले ही दांतों और मौखिक समस्याएँ समस्याएँ होने का खतरा कम होता है लेकिन एक महिला अपने जीवन में कई बार दांत और मौखिक समस्याओं का सामना करती है, भले ही वह अस्थाई ही क्यों न हो। अपने जीवन के विभिन्न चरणों में बदलते हार्मोन के कारण, महिलाओं को कई मौखिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा होता है। जब एक महिला को पहली बार मासिक धर्म शुरू होता है, तो उसे पीरियड्स के दौरान मुंह के छाले या मसूड़ों में सूजन का अनुभव हो सकता है।
गर्भावस्था के दौरान, बढ़े हुए हार्मोन मुंह द्वारा उत्पादित लार की मात्रा को प्रभावित कर सकते हैं। मॉर्निंग सिकनेस के कारण बार-बार होने वाली उल्टी के कारण दांतों में सड़न हो सकती है। हालाँकि गर्भावस्था के दौरान ही दांत और मौखिक समस्या बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाती है, काफी बार यह समस्या आखरी महीने के दौरान भी खत्म हो जाती है। लेकिन अगर बच्चे के जन्म के बाद महिला का शारीरिक रूप से ठीक से ख्याल न रखा जाए तो उनके दांत कमजोर होने की आशंका बनी रहती है। इसके लिए महिलाओं को अपने खाने का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रजोनिवृत्ति के दौरान, एस्ट्रोजन की कम मात्रा आपके मसूड़ों की बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकती है। कुछ महिलाओं को रजोनिवृत्ति के दौरान बर्निंग माउथ सिंड्रोम (बीएमएस) नामक स्थिति का भी अनुभव हो सकता है।
दांत और मौखिक बीमारियों का उपचार कैसे किया जा सकता है? How can dental and oral diseases be treated?
भले ही आप अपने दांतों की अच्छे से देखभाल करते हों, लेकिन फिर भी आपको साल में कम से कम दो बार एक डेंटल से अपने दांतों की जांच करवानी चाहिए, खासकर जब आप उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी समस्या से जूझ रहे हों। अगर आप किसी भी डेंटल या ओरल संबंधित समस्या से जूझ रहे हैं तो आपको जल्द से जल्द एक डेंटिस्ट से मिलना चाहिए और उसका उपचार लेना शुरू कर देना चाहिए। एक डेंटिस्ट निम्नलिखित तरह से डेंटल या ओरल संबंधित समस्याओं का उपचार कर सकते हैं :-
सफाई Cleanings –
दांतों पर जमा होने वाला प्लाक और टैटार ब्रश करने के बाद भी नहीं हटता जिसकी वजह से दांत पीले दिखाई देने लगते हैं। इसके लिए आप डेंटिस्ट से अपने दांतों की सफाई करवा सकते हैं, इससे आपके दांत पहले से ज्यादा सुंदर हो जाते हैं।
फ्लोराइड उपचार Fluoride Treatments –
अगर आपके दांतों में कैविटी की समस्या हो गई तो डॉक्टर आपको फ्लोराइड उपचार दे सकते हैं। फ्लोराइड एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला खनिज है। यह आपके दांतों के इनेमल को मजबूत करने में मदद कर सकता है और उन्हें बैक्टीरिया और एसिड के खिलाफ मजबूत बनाता है।
एंटीबायोटिक दवाओं Antibiotic Medicines –
अगर आप दांतों से जुड़ी किसी गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं जैसे कि मसूड़ों से जुड़ी कोई समस्या। तो ऐसे में डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक दवाएं लेने की सलाह दे सकते हैं। इन एंटीबायोटिकस में डॉक्टर आपको कुछ ऐसी दवा दे सकते हैं जिससे कुल्ला किया जा सके, जेल हो सकता है, गोली या कैप्सूल हो सकता है। वहीं अगर सर्जिकल उपचार किया गया है तो ऐसे में डॉक्टर आपको सामयिक एंटीबायोटिक जेल (topical antibiotic gel) भी दे सकते हैं।
फिलिंग्स, क्राउन, और सीलेंट Fillings, Crowns, and Sealants –
दांत में कैविटी, दरार या छेद को ठीक करने के लिए डॉक्टर फिलिंग का उपयोग करते हैं।
यदि आपके दांत के एक बड़े हिस्से को हटाने की जरूरत है या किसी कारण से दांत टूट गया है तो क्राउन का उपयोग किया जाता है। क्राउन दो प्रकार के होते हैं: एक इम्प्लांट क्राउन जो इम्प्लांट के ऊपर फिट बैठता है, और एक नियमित क्राउन जो एक प्राकृतिक दांत पर फिट बैठता है।
दंत सीलेंट पतले, सुरक्षात्मक कोटिंग होती हैं जो कैविटी को रोकने में मदद के लिए पीछे के दांतों या दाढ़ पर लगाए जाते हैं। यह उपचार तकरीबन बच्चों के लिए अपनाया जाता है ताकि उन्हें कैविटी न हो। सीलेंट लगाने में आसान और पूरी तरह से दर्द रहित होते हैं।
रूट केनाल Root Canal –
यदि दांतों की सड़न दांत के अंदर तक तंत्रिका तक पहुंच जाती है, तो आपको रूट कैनाल की आवश्यकता हो सकती है। रूट कैनाल के दौरान, तंत्रिका को हटा दिया जाता है और एक बायो कंपैटिबल सामग्री के साथ बदल दिया जाता है।
दंत और मौखिक समस्याओं के लिए सर्जरी Surgery for Dental and Oral Problems –
जब दांतों और मौखिक समस्याएँ अपना गंभीर रूप धारण कर लेते हैं तो ऐसे में सर्जरी की जाती है। डेंटल और ओरल दोनों से जुड़ी सर्जरी काफी मुश्किल हो सकती है, इसलिए इसे काफी गंभीर स्थिति में ही किया जाता है। डेंटल और ओरल समस्याओं में निम्नलिखित प्रकार की सर्जरी की जा सकती है :-
फ्लैप सर्जरी Flap Surgery – फ्लैप सर्जरी के दौरान, सर्जन ऊतक के एक हिस्से को ऊपर उठाने के लिए मसूड़े में एक छोटा सा चीरा लगाता है। फिर मसूड़ों के नीचे से टैटार और बैक्टीरिया को हटा दिया जाता है। फिर फ्लैप को आपके दांतों के आस-पास की जगह पर वापस सिल दिया जाता है।
हड्डियों मे परिवर्तन Bone Grafting – बोन ग्राफ्टिंग की जरूरत तब पड़ती है जब मसूड़े की बीमारी आपके दांत की जड़ के आसपास की हड्डी को नुकसान पहुंचाती है। डेंटिस्ट क्षतिग्रस्त हड्डी को एक ग्राफ्ट से बदल देता है, जिसे आपकी अपनी हड्डी, सिंथेटिक हड्डी या दान की गई हड्डी से बनाया जा सकता है।
नरम ऊतक ग्राफ्ट्स Soft Tissue Grafts – एक नरम ऊतक ग्राफ्ट का उपयोग घटते मसूड़ों के इलाज के लिए किया जाता है। डेंटिस्ट आपके मुंह से ऊतक का एक छोटा सा टुकड़ा निकाल देगा या डोनर ऊतक का उपयोग करके और इसे आपके मसूड़ों के उन क्षेत्रों में जोड़ देगा जहाँ ऊतक नहीं था।
दांत उखाड़ना Tooth Extraction – दांत निकलना या उखाड़ना दांतों से जुड़ी सबसे आम सर्जरी है। यह काफी स्थितों में किया जा सकता है, जैसे कैविटी होने पर, दांतों का ठीक से न नीलने पर, किसी दांत से परेशानी होने पर, दाढ़ से होने पर या किसी अन्य शारीरिक समस्या होने पर।
दंत्य प्रतिस्थापन Dental Replacement – किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण खोए हुए दांतों को बदलने के लिए दंत प्रत्यारोपण का उपयोग किया जाता है। एक इम्प्लांट को सर्जिकल डॉक्टर द्वारा जबड़े की हड्डी में रखा जाता है। इम्प्लांट लगाने के बाद, आपकी हड्डियाँ उसके चारों ओर विकसित होंगी। इसे ऑसियोइंटीग्रेशन कहा जाता है। एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, डेंटिस्ट रोगी लिए नकली दांत लगाते हैं।
कैंसर के दौरान सर्जरी – अगर कोई व्यक्ति किसी भी मौखिक कैंसर से जूझ रहा होता है तो जरूरत पड़ने पर डॉक्टर उन्हें ऑपरेशन करवाने की सलाह देते हैं। ऐसी सर्जरी या ऑपरेशन में डॉक्टर कैंसर वाले भाग को निकाल देते हैं, जिससे कैंसर और आगे न बढ़ सके।
ध्यान दें, “डेंटल या ओरल कोई भी समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह से ही उपचार लेना चाहिए”।
Mr. Ravi Nirwal is a Medical Content Writer at IJCP Group with over 6 years of experience. He specializes in creating engaging content for the healthcare industry, with a focus on Ayurveda and clinical studies. Ravi has worked with prestigious organizations such as Karma Ayurveda and the IJCP, where he has honed his skills in translating complex medical concepts into accessible content. His commitment to accuracy and his ability to craft compelling narratives make him a sought-after writer in the field.
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