प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम – लक्षण, कारण और बचाव | Premenstrual Syndrome in Hindi

प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम – लक्षण, कारण और बचाव | Premenstrual Syndrome in Hindi

प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम क्या है? What is premenstrual syndrome?

प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम (पीएमएस – PMS) उन कई समस्याओं या लक्षणों का एक समूह है जो कि महिलाओं को पीरियड्स (periods) के दौरान होती है। प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम को प्रागार्तव भी कहा जाता है। माहवारी चक्र (menstrual cycle) शुरू होने के करीब एक से दो सप्ताह पहले अक्सर कई महिलाओं को इसके कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जो कि माहवारी यानि पीरियड्स खत्म होने के बाद अपने आप समाप्त हो जाते हैं। वैसे तो यह लक्षण सामान्य होते हैं, लेकिन कई महिलाओं में यह लक्षण काफी गंभीर रूप धारण कर लेते हैं जिसकी वजह से उनका जीवन शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से प्रभावित होता है।

क्या उम्र प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम को प्रभावित करती है? Does age affect premenstrual syndrome?

प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम के अनुभव पर उम्र का प्रभाव पड़ सकता है। उम्र और पीएमएस के बीच संबंध के संबंध में यहां कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं :-

1.     पीएमएस की शुरुआत (Onset of PMS) :- पीएमएस आमतौर पर मासिक धर्म और ओव्यूलेशन की शुरुआत के बाद, प्रजनन वर्षों के दौरान शुरू होता है। यह आमतौर पर किशोरावस्था के अंत या बीस के दशक की शुरुआत में शुरू होता है। जिन महिलाओं का मासिक चक्र नियमित होता है उनमें पीएमएस के लक्षणों का अनुभव होने की संभावना अधिक होती है।

2.     गंभीरता और अवधि (Severity and Duration) :- पीएमएस के लक्षण व्यक्तियों में गंभीरता और अवधि में भिन्न हो सकते हैं। कुछ महिलाओं को हल्के लक्षणों का अनुभव हो सकता है जो उनके दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण रूप से हस्तक्षेप नहीं करते हैं, जबकि अन्य में अधिक गंभीर लक्षण हो सकते हैं जो उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। लक्षणों की अवधि भी अलग-अलग हो सकती है, कुछ महिलाओं को कुछ दिनों तक लक्षणों का अनुभव होता है, जबकि अन्य को मासिक धर्म से दो सप्ताह पहले तक लक्षणों का अनुभव हो सकता है।

3.     पेरिमेनोपॉज़ और पीएमएस (Perimenopause and PMS) :- पेरिमेनोपॉज़ उस संक्रमणकालीन चरण को संदर्भित करता है जो रजोनिवृत्ति तक जाता है जब एक महिला के हार्मोन के स्तर में उतार-चढ़ाव होता है। इस दौरान, कुछ महिलाओं को अपने पीएमएस लक्षणों में बदलाव का अनुभव हो सकता है। लक्षण अधिक तीव्र हो सकते हैं या अधिक बार हो सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पेरिमेनोपॉज़ अन्य हार्मोनल परिवर्तन भी ला सकता है जो मूड में बदलाव, चिड़चिड़ापन और आमतौर पर पीएमएस से जुड़े अन्य लक्षणों में योगदान कर सकता है।

4.     रजोनिवृत्ति और पीएमएस (Menopause and PMS) :- रजोनिवृत्ति प्रजनन वर्षों के अंत का प्रतीक है जब मासिक धर्म बंद हो जाता है। एक बार जब एक महिला रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म के बिना लगातार 12 महीनों तक परिभाषित) तक पहुंचती है, तो पीएमएस के लक्षण आम तौर पर कम हो जाते हैं। हालाँकि, पीएमएस और रजोनिवृत्ति से संबंधित अन्य लक्षणों के बीच अंतर करना आवश्यक है, क्योंकि रजोनिवृत्ति अपने स्वयं के लक्षण और हार्मोनल उतार-चढ़ाव ला सकती है।

पीएमएस के लक्षण क्या है? What are the symptoms of PMS?

पीएमएस यानि प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम होने पर महिलाओं में जो लक्षण दिखाई देते हैं वह सामान्यत काफी हल्के होते हैं। लेकिन इसकी वजह से महिलाओं की दिनचर्या काफी प्रभावित होती है। ऐसा नहीं है कि हर महिला को माहवारी के दौरान पीएमएस के लक्षण दिखाई दें। अगर एक महिला को एक बार पीएमएस की समस्या होना शुरू हो जाए तो इसकी आशंका काफी बढ़ जाती है कि उन्हें अब हर मासिक धर्म से पहले इसके लक्षण दिखाई दें। पीएमएस होने पर जो लक्षण दिखाई देते हैं वह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के होते हैं। हर महिला में प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम होने पर अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं, ऐसा महिला के स्वास्थ्य, खानपान, रहन-सहन, मानसिक व्यहवार, पर्यावरण जैसी स्थितियों के कारण होता है। लेकिन सभी महिलाओं में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। चलिए पीएमएस होने पर दिखाई देने वाले लक्षणों के बारे में जानते हैं :-

भावनात्मक और व्यवहार संबंधी लक्षण :-

1.     चिंता बने रहना

2.     बेचैनी महसूस करना

3.     अकेलापन महसूस करना

4.     असामान्य क्रोध और चिड़चिड़ापन होना

5.     लगातार भूख में परिवर्तन होना

6.     अचानक से मीठा खाने का दिल करना

7.     समय-समय पर स्वाद में परिवर्तन होना

8.     नींद के पैटर्न में बदलाव

9.     मूड खराब बने रहना

10.  खुद को लगातार बेकाबू होना

11.  रोने का दिल करना

12.  हर थोड़े समय में मूड बदलना

13.  विश्वास मजबूत होना या कम होना

14.  सेक्स ड्राइव में कमी होना (decreased sex drive)

15.  किसी भी चीज़ या जानकारी को याद रखने में कठिनाई

पीएमएस होने पर निम्नलिखित शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं :-

1.     ब्लोटिंग की समस्या (Bloating problem)

2.     शरीर में ऐंठन होना

3.     गले में खराश होना

4.     एक या दोनों स्तनों में सूजन

5.     मुहांसे की समस्या

6.     अचानक से कब्ज

7.     माहवारी होने तक दस्त

8.     लगातार सिर दर्द बने रहना

9.     पीठ और मांसपेशियों में दर्द

10.  प्रकाश के प्रति असामान्य संवेदनशीलता

11.  रक्तचाप में वृद्धि होना (increased blood pressure)

प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम होने का क्या कारण है? What causes premenstrual syndrome?

प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम का सटीक कारण पूरी तरह से समझा नहीं गया है। हालाँकि, माना जाता है कि पीएमएस लक्षणों के विकास में कई कारकों का योगदान होता है। इन कारकों में निम्न शामिल हैं :-

1.     हार्मोनल उतार-चढ़ाव (hormonal fluctuations) :- माना जाता है कि मासिक धर्म चक्र के दौरान होने वाले हार्मोनल परिवर्तन पीएमएस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एस्ट्रोजन (estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (progesterone) के स्तर में उतार-चढ़ाव, विशेष रूप से मासिक धर्म चक्र के दूसरे भाग (ल्यूटियल चरण – luteal phase) में, पीएमएस के लक्षणों में योगदान माना जाता है। उन विशिष्ट तंत्रों का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है जिनके द्वारा ये हार्मोनल परिवर्तन लक्षणों को प्रभावित करते हैं।

2.     सेरोटोनिन स्तर (serotonin levels) :- सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर (neurotransmitter) है जो मूड, भावनाओं और शारीरिक लक्षणों को प्रभावित करता है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि पीएमएस वाली महिलाओं में सेरोटोनिन का स्तर कम हो सकता है या सेरोटोनिन फ़ंक्शन (serotonin function) में बदलाव हो सकता है, जो पीएमएस के मूड से संबंधित लक्षणों, जैसे चिड़चिड़ापन, अवसाद या चिंता में योगदान कर सकता है।

3.     रासायनिक परिवर्तन (chemical changes) :- मस्तिष्क में कुछ रसायनों, जैसे गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड (जीएबीए) (Gamma-Aminobutyric Acid (GABA) में परिवर्तन को पीएमएस के लक्षणों से जोड़ा गया है। जीएबीए चिंता को विनियमित करने में शामिल है, और जीएबीए स्तरों में परिवर्तन पीएमएस के दौरान अनुभव की जाने वाली चिंता और मनोदशा के लक्षणों में योगदान कर सकता है।

4.     हार्मोनल परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता (sensitivity to hormonal changes) :- कुछ महिलाओं में मासिक धर्म चक्र के दौरान सामान्य हार्मोनल उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है, जिससे पीएमएस के लक्षण विकसित हो सकते हैं।

5.     अन्य कारक (other factors) :- अन्य कारक, जैसे तनाव, जीवनशैली कारक, आहार और व्यक्तिगत संवेदनशीलता, भी पीएमएस लक्षणों के विकास और गंभीरता में योगदान कर सकते हैं। हालाँकि, पीएमएस में हार्मोनल परिवर्तनों के साथ इन कारकों की परस्पर क्रिया को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पीएमएस एक जटिल स्थिति है, और सटीक कारण प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त, एक संबंधित स्थिति है जिसे प्रीमेंसट्रूअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी) (Premenstrual dysphoric disorder (PMDD) कहा जाता है, जो विशिष्ट नैदानिक ​​मानदंडों के साथ पीएमएस का अधिक गंभीर रूप है।

यदि आप पीएमएस के लक्षणों के कारण दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण परेशानी या व्यवधान का अनुभव कर रहे हैं, तो एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करना उचित है। वे आपके लक्षणों का मूल्यांकन कर सकते हैं, उचित निदान प्रदान कर सकते हैं, और पीएमएस से संबंधित असुविधा को कम करने के लिए उचित प्रबंधन रणनीतियों या उपचार विकल्पों का सुझाव दे सकते हैं।

पीएमएस और पीएमडीडी में क्या फर्क है? What is the difference between PMS and PMDD?

देखा जाए तो पीएमएस और पीएमडीडी में कोई खास फर्क नहीं है। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (premenstrual dysphoric disorder) पीएमएस का ही बढ़ा हुआ रूप है। जब पीएमएस के लक्षण ज्यादा बढ़ने लग जाए और उसकी वजह से महिला को ज्यादा और लंबे समय तक समस्याएँ होने लगे तो उसे ही प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर यानि पीएमडीडी कहा जाता है। पीएमएस की तरह, पीएमडीडी के लक्षण एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और सेरोटोनिन के स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण हो सकते हैं। पीएमडीडी होने पर महिला को निम्नलिखित लक्षणों को अनुभव कर सकती है :- 

1.     अवसाद होना या ऐसा अनुभव होना

2.     बिना किसी कारण अचानक से उदास होना और लंबे समय तक उदासी बने रहना 

3.     अचानक से या हर कुछ समय में रोने का मन करना

4.     हमेशा आत्महत्या के विचार आना

5.     घबड़ाहट बने रहना

6.     बिना किसी वजह के क्रोध या चिड़चिड़ापन

7.     लगातार बिना वजह के चिंता होना

8.     मूड में अचानक बदलाव होना

9.     दैनिक गतिविधियों में रुचि की कमी

10.  नींद न आना या अच्छी नींद न आना

11.  सोचने या ध्यान केंद्रित करने में परेशानी

12.  लगातार भूख लगना और पेट भरने के बाद भी लगातार खाते रहना

13.  स्वाद और खाने की पसंद में बदलाव होना

14.  दर्दनाक ऐंठन, जिससे दवाओं से भी आराम न मिलना

15.  शरीर के कई हिस्सों में सूजन आना विशेष रूप से स्तनों में

16.  मूत्राशय में दर्द बनना

अगर आप इन लक्षणों को महसूस करती है तो निश्चित ही आप बड़ी परेशानी से जूझ रही है। यह लक्षण दर्शाते हैं कि आपको जल्द से जल्द बेहतर सलाह और चिकित्सीय उपचार की आवयश्कता है।

पीएमएस या पीएमडीडी का निदान कैसे किये जा सकता है? How is PMS or PMDD diagnosed?

सबसे पहले आपको अपने अंदर पीएमएस या पीएमडीडी के लक्षणों की पहचान करनी होगी। इसके अलावा आप इस बारे में भी जानकारी रखें कि मासिक धर्म शुरू होने से पहले लक्षण कितने दिन पहले दिखाई देते हैं और माहवारी के कितने दिनों बाद तक लक्षण रहते हैं, इसके अलावा क्या इनकी वजह से आपको पीरियड्स में भी क्या कोई अन्य समस्या हो रही है। इन सभी के बारे में उचित जानकारी प्राप्त करने के बाद डॉक्टर को इस बात की पुष्टि करने में आसानी होगी कि आपको पीएमएस है या उसका बढ़ा हुआ रूप पीएमडीडी।

पीएमएस या पीएमडीडी की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर आपकी निम्नलिखित प्रकार की जांच कर सकते हैं :-

1.     हार्मोनल जन्म नियंत्रण

2.     शरीर में कैल्शियम, मैग्नीशियम, या विटामिन बी 6 सहित की जांच

3.     मेफ़ानामिक एसिड की जांच

पीएमएस या पीएमडीडी का सटीक निदान करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं :-

1.     डॉक्टर आपसे इस बारे में पूछ सकते हैं कि क्या आपके परिवार में पहले किसी को पीएमएस, पीएमडीडी, और अन्य मनोदशा और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का सामना किया है। इससे इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि कहीं आपको पीएमएस या पीएमडीडी वंशानुगत तो नहीं?

2.     आपके डॉक्टर आपसे इस बारे में पूछ सकते हैं कि क्या आपके परिवार में पहले कोई हाइपोथायरायडिज्म या एंडोमेट्रियोसिस सहित अन्य स्वास्थ्य स्थितियों से तो नहीं जूझ रहे थे?

3.     आपके लक्षणों के आधार पर दोच्योर स्त्री रोग संबंधी स्थितियों को दूर करने के लिए एक पैल्विक परीक्षा की सिफारिश कर सकते हैं।

पीएमएस के निदान के लिए डॉक्टर आपको निम्नलिखित जांच करवाने की सलाह भी दे सकते हैं :-

1.     एनीमिया

2.     एंडोमेट्रिओसिस Endometriosis

3.     थाइराइड

4.     चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (IBS)

5.     क्रोनिक फेटीग सिंड्रोम

सबंधित रोग से जुड़ी तमाम जानकारी प्राप्त करने के बाद ही डॉक्टर आपको उचित उपचार प्रदान कर सकते हैं।

प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है? How is premenstrual syndrome treated?

प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) के उपचार का उद्देश्य लक्षणों को कम करना और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करना है। विशिष्ट उपचार विकल्प लक्षणों की गंभीरता और व्यक्तिगत आवश्यकताओं के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। पीएमएस के प्रबंधन के लिए यहां कुछ सामान्य दृष्टिकोण दिए गए हैं :-

जीवनशैली में संशोधन (lifestyle modifications)

1.     नियमित व्यायाम (Regular Exercise) :- एरोबिक व्यायाम जैसी नियमित शारीरिक गतिविधि में शामिल होने से पीएमएस के लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है। सप्ताह के अधिकांश दिनों में कम से कम 30 मिनट की मध्यम-तीव्रता वाले व्यायाम का लक्ष्य रखें।

2.     स्वस्थ आहार (Healthy Diet) :- संतुलित आहार अपनाना जिसमें साबुत अनाज, फल, सब्जियाँ और कम वसा वाले प्रोटीन शामिल हों, समग्र कल्याण में सहायता कर सकते हैं। नमक, कैफीन और परिष्कृत चीनी का सेवन कम करने से सूजन और पीएमएस से संबंधित अन्य असुविधाओं को कम करने में मदद मिल सकती है।

3.     तनाव प्रबंधन (Stress Management) :- गहरी साँस लेना, ध्यान, योग जैसी तनाव कम करने वाली तकनीकों का अभ्यास करना, या उन गतिविधियों में शामिल होना जिनका आप आनंद लेते हैं, तनाव को प्रबंधित करने और लक्षणों में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।

4.     नींद (Sleep) :- पर्याप्त नींद को प्राथमिकता देना और नियमित नींद की दिनचर्या स्थापित करने से पीएमएस के लक्षणों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

औषधियाँ (Medicines)

1.     नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) (Nonsteroidal Anti-Inflammatory Drugs (NSAIDs) :- ओवर-द-काउंटर एनएसएआईडी, जैसे इबुप्रोफेन या नेप्रोक्सन, मासिक धर्म में ऐंठन, स्तन कोमलता और पीएमएस से जुड़े सिरदर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं।

2.     हार्मोनल गर्भनिरोधक (Hormonal Contraception) :- मौखिक गर्भनिरोधक गोलियाँ या अन्य हार्मोनल जन्म नियंत्रण विधियाँ हार्मोनल उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर सकती हैं और कुछ व्यक्तियों में पीएमएस के लक्षणों को कम कर सकती हैं। किसी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर के साथ विकल्पों और संभावित लाभों पर चर्चा करना महत्वपूर्ण है।

3.     अवसादरोधी (Anti-Depressants) :- गंभीर पीएमएस या अधिक गंभीर रूप, प्रीमेंसट्रूअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी) को प्रबंधित करने के लिए चयनात्मक सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (एसएसआरआई), जैसे फ्लुओक्सेटीन (fluoxetine) या सेराट्रालिन निर्धारित किया जा सकता है। एसएसआरआई सेरोटोनिन के स्तर को नियंत्रित करने और मूड से संबंधित लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं।

वैकल्पिक उपचार (Alternative Treatments)

1.     हर्बल सप्लीमेंट (Herbal Supplement) :- कुछ हर्बल सप्लीमेंट, जैसे चेस्टबेरी (विटेक्स एग्नस-कास्टस), ईवनिंग प्रिमरोज़ ऑयल (Evening Primrose Oil), या कैल्शियम सप्लीमेंट का उपयोग पीएमएस के लक्षणों को कम करने के लिए किया गया है। किसी भी हर्बल सप्लीमेंट को शुरू करने से पहले किसी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

2.     पूरक चिकित्साएँ (Complementary Therapies) :- एक्यूपंक्चर (acupuncture), मालिश चिकित्सा (massage therapy), या अरोमाथेरेपी (aromatherapy) जैसी तकनीकें कुछ व्यक्तियों के लिए राहत प्रदान कर सकती हैं। हालाँकि, पीएमएस लक्षणों के उपचार में उनकी प्रभावकारिता स्थापित करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

मनोवैज्ञानिक सहायता (Psychological Support) :-

1.     संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (सीबीटी) (Cognitive-Behavioral Therapy (CBT) :- सीबीटी व्यक्तियों को नकारात्मक विचार पैटर्न को पहचानने और संशोधित करने, तनाव का प्रबंधन करने और पीएमएस लक्षणों से निपटने के लिए मुकाबला रणनीति विकसित करने में मदद कर सकता है।

2.     सहायता समूह या परामर्श (Support Group or Counseling) :- सहायता समूहों में भाग लेना या परामर्श लेना पीएमएस लक्षणों के प्रबंधन के लिए भावनात्मक समर्थन, शिक्षा और रणनीति प्रदान कर सकता है।

उपचार का चुनाव लक्षणों की गंभीरता, व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और समग्र स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करने की सिफारिश की जाती है जो आपके लक्षणों का मूल्यांकन कर सकता है, उपचार विकल्पों पर चर्चा कर सकता है और पीएमएस को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए एक व्यक्तिगत योजना विकसित कर सकता है।

 

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Mr. Ravi Nirwal

Mr. Ravi Nirwal is a Medical Content Writer at IJCP Group with over 6 years of experience. He specializes in creating engaging content for the healthcare industry, with a focus on Ayurveda and clinical studies. Ravi has worked with prestigious organizations such as Karma Ayurveda and the IJCP, where he has honed his skills in translating complex medical concepts into accessible content. His commitment to accuracy and his ability to craft compelling narratives make him a sought-after writer in the field.

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