कुष्ठ रोग या कोढ़ का नाम सुनते ही काफी भारतियों के दिमाग में यह विचार बनने लग जाता है कि हमें इस विषय में बात नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह न केवल एक बीमारी है, बल्कि उससे बढ़कर यह एक ईश्वरीय प्रकोप है। बहुत से लोगों को आज भी यही लगता है कि कुष्ठ रोग कोई ईश्वरीय प्रकोप से हुई कोई बीमारी है, लेकिन ऐसा नहीं है। इस गंभीर रोग के विषय में कम जानकारी होने के कारण अकेले भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इसे लेकर कई भ्रान्तिया बनी हुई है। आज इस लेख के जरिये हम आपको कुष्ठ रोग के बारे में सरल शब्दों की सहायता से उचित जानकारी देंगे और कोशिश करेंगे कि समाज में इस रोग से जुड़ी भ्रांतियां कम हो।
कुष्ठ रोग या कोढ़ एक क्रोनिक बीमारी या संक्रमण है जो कि जीवाणु माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण से होता है। यह मुख्य रूप से हाथ-पांव, त्वचा, नाक की परत और ऊपरी श्वसन पथ की नसों को प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है। कुष्ठ रोग त्वचा के अल्सर, तंत्रिका क्षति और मांसपेशियों में कमजोरी पैदा करता है। यदि इसका समय पर और उचित इलाज नहीं किया जाए तो इसकी वजह से पीड़ित को गंभीर विकृति और विकलांगता का सामना करना पड़ सकता है।
कोढ़ की बीमारी अति पिछड़े और विकाशील देशों में बहुत आम है। लेकिन यह बीमारी सबसे ज्यादा उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में रहने वाले लोगों में सबसे आम है। माइकोबैक्टीरियम लेप्रे नामक बैक्टीरिया बहुत धीरे-धीरे बढ़ते हैं और आसानी से नहीं फैलते हैं।
कुष्ठ रोग को हेन्सन रोग से भी जाना जाता है। इसका यह नाम नॉर्वेजियन वैज्ञानिक गेरहार्ड हेनरिक अर्माउर हेन्सन की वजह से पड़ा। गेरहार्ड हेनरिक अर्माउर हेन्सन ने 1873 में बीमारी के कारण के रूप में अब माइकोबैक्टीरियम लेप्री के रूप में ज्ञात धीमी गति से बढ़ने वाले जीवाणु की खोज की थी। इसे पकड़ना मुश्किल है, और संक्रमण के बाद रोग के लक्षण विकसित होने में कई साल लग सकते हैं।
कुष्ठ रोग या कोढ़ दुनिया की सबसे पुरानी बीमारी है जिसके बारे में भारत के कई किस्सों, कहानियों और ग्रंथों में ज़िक्र मिलता है। कोढ़ से जुड़ा पहला ज्ञात लिखित संदर्भ लगभग 600 ई.पू. का है। भारत की सुश्रुत संहिता 600 सदी ईसा पूर्व से ही इस स्थिति का काफी अच्छी तरह वर्णन करती है और यहां तक कि इसके लिये उपचारात्मक सुझाव भी प्रदान करती है"। हिब्रू बाइबिल के अलावा दुनिया भर की कई धार्मिक पुस्तकों में इस रोग के विषय में लिखा गया है।
गंभीर बात यह है कि इसे हर जगह एक कलंक के रूप में देखा गया है। लोग कुष्ठ रोग को लेकर अपनी कई भ्रांतियों के साथ आज भी जी रहे हैं। भारत में भी इस रोग को एक छूने से फैलने वाली बीमारी के रूप में देखा जाता था जिसकी वजह से कुष्ठ रोगी से दुरी बनाकर रखी जाती थी, आपने ऐसा कई हिंदी फिल्मों में जरूर देखा होगा। भारत में वर्षों से ही कुष्ठ रोग को एक ईश्वरीय प्रकोप के रूप में देखा गया है, लोगों का मानना है कि इश्वर गुस्सा होने पर व्यक्ति को यह बीमारी श्राप के रूप में प्रदान करते हैं।
कुष्ठ रोग से जुड़ी निम्नलिखित भ्रान्तिया आज भी चल रही है :-
लोगों का मानना है कि कोढ़ की बीमारी आकस्मिक संपर्क, हाथ मिलाना या गले लगाने, पास बैठे, एक साथ खाने से और यौन संपर्क बनाने से फैलती है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) Centers for Disease Control and Prevention (CDC) अपने एक शोध में इस बारे में पुष्टि कर चूका है।
लोगों का मानना है कि कोढ़ की बीमारी वंशानुगत रोग है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है यह संक्रमण की चपेट में आने से होता है।
कुष्ठ रोग कोई ईश्वरीय प्रकोप, पुराने जन्मों का पाप या अन्य कोई श्राप नहीं है बल्कि यह जीवाणु की चपेट में आने से होता है जो कि व्यक्ति को उम्र के किसी भी दौर में अपनी चपेट में ले सकता है।
बहुत से लोगों का मानना है कि अगर माता या पिता को कुष्ठ रोग है तो बच्चे को भी यह बीमारी हो सकती है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, क्योंकि यह बीमारी जीन में होती।
कई लोगों का मानना है कि कुष्ठ रोग लाइलाज बीमारी है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, कुष्ठ रोग से जुड़ी ऐसी बहुत सी दवाएं हैं जिनकी मदद से इससे हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। वर्ष 2005 में भारत आधिकारिक तौर पर कुष्ठ रोग से मुक्त देश बन गया था।
कुष्ठ रोग के लक्षण कभी भी एक दम से सामने नहीं आते। इसके लक्षण सामने आने में कम से कम 20 सालों तक का वक्त लग सकता है। दरअसल, माइकोबैक्टीरियम बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करने के बाद यह बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है जिसकी वजह से इसके लक्षण कई वर्षों में दिखाई देते हैं और इस रोग के गंभीर होने का यही मूल कारण भी है। जब तक संक्रमित व्यक्ति इसके लक्षणों की पहचान या शरीर में होने वाले बदलावों को नोटिस करता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। वहीं हर कुष्ठ रोगी में दिखाई देने वाले लक्षण दुसरे कुष्ठ रोगी से भिन्न हो सकते हैं।
कोढ़ की बीमारी होने पर व्यक्ति को समय के साथ स्पर्श करने और दर्द को महसूस करने की क्षमता जाने या कम होने लगती है और साथ ही त्वचा में भी काफी बदलाव दिखाई देने लग जाता है। इस गंभीर रोग में 90 प्रतिशत लोगों में सबसे पहले दिखाई देने वाला लक्षण है सुन्नता और त्वचा में सनसनी। इसके अलावा व्यक्ति में निम्नलिखित समस्याएँ भी दिखाई देने लग जाती है :-
तापमान में परिवर्तन बने रहना
हल्का स्पर्श और दर्द
गहरा दबाव होना
शरीर में होने वाली सुन्नता चोटों और संक्रमण के जोखिम को बढ़ा सकती है। पहले त्वचा परिवर्तन में आमतौर पर त्वचा के एक या कुछ पैच अपना रंग खो देते हैं। इसके अलावा त्वचा से जुड़े निम्नलिखित परिवर्तन भी दिखाई देने लग जाते हैं :-
त्वचा का रंग हल्का या काला होना
सूखापन या परतदारपन
सूजन के लक्षण, जैसे लाली
त्वचा में जलन महसूस होना
नोड्यूल्स की वृद्धि
पैरों पर दर्द रहित अल्सर का बनना
घावों के आसपास की त्वचा का मोटा होना
चेहरे या ईयरलोब की गांठ या सूजन
त्वचा संबंधित लक्षणों के इतर कुष्ठ रोगी को संवेदना की हानि भी होने लगती है, जिसके कारण निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं :-
नाक बंद होना और नाक से खून बहना
मांसपेशी में कमज़ोरी होना
आँखों से जुड़ी समस्याएँ होना
हाथों और पैरों में कमजोरी और सुन्नता
सूजी हुई नसें, विशेष रूप से घुटनों, कोहनी और गर्दन के आसपास
बढ़ी हुई नसें, विशेष रूप से कोहनी और घुटनों में
जैसे-जैसे कुष्ठ रोग की स्थिति बढ़ने लगती है वैसे-वैसे कुष्ठ रोगी को निम्नलिखित समस्याएँ भी होना शुरू हो जाती है :-
भौहों का नुकसान
पैरों के तलवों पर छाले जो ठीक नहीं होते
पक्षाघात Paralysis
हाथ और पैर की विकृति होना
दृष्टि खोना या दृष्टि से संबंधित कोई अन्य समस्या होना
उंगलियों और पैर की उंगलियों का "गायब होना", क्योंकि उनकी उपास्थि छोटी हो जाती है और शरीर उन्हें पुन: अवशोषित कर लेता है
पलक झपकाने वाली नसे प्रभावित हो जाती है जिससे आँख शुष्क हो जाती है
नाक के अंदर श्लेष्मा झिल्ली को नुकसान होना
कुष्ठ रोग कैसे फैलता है या इसके होने के क्या कारण है? यह सवाल दोनों भले ही अलग लग रहे हो लेकिन इनका जवाब और सारांश एक ही है।
माइकोबैक्टीरियम लेप्राई जीवाणु कुष्ठ रोग होने का मूल कारण है। ऐसा माना जाता है कि कुष्ठ रोग संक्रमण वाले व्यक्ति के श्लेष्म स्राव के संपर्क में आने से फैलता है। माना जाता है कि कुष्ठ रोगी के संपर्क में आने से दुसरे व्यक्ति को यह रोग अपनी चपेट में ले लेता है, लेकिन ऐसा नहीं है।
हाँ, यह बात सत्य है कि कुष्ट रोग एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में फ़ैल सकता है, लेकिन यह आमतौर पर तब होता है जब कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति छींकता या खांसता है। साथ ही ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि बस एक बार कुष्ठ रोगी के छींक या खांसी के संपर्क में आने से ही सामने वाले व्यक्ति को भी कुष्ठ रोग हो जाए। ऐसा तब होता है जब व्यक्ति लगातार और लंबे समय तक किसी कुष्ठ रोगी के संपर्क में आए और साथ ही वह व्यक्ति अपने निजी स्वास्थ्य का भी ध्यान न रखें।
जब माइकोबैक्टीरियम लेप्राई जीवाणु किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है तो उसे व्यक्ति के शरीर में ठीक से एक्टिव होने में और अपने लक्षण दिखाने में कई वर्षों का समय लगता है। अगर आप किसी कुष्ठ रोगी की छींक या खांसी के संपर्क में आए हैं तो आपको इस बारे में कुष्ठ रोग संबंधित चिकित्सक से बात करनी चाहिए।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के अनुसार, दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको के मूल जानवर आर्मडिलो भी इस जीवाणु को किसी व्यक्ति के शरीर में पहुंचा सकता है। ऐसे में अगर आप किसी आर्मडिलो जानवर के संपर्क में आते हैं तो आपको अपनी जांच जरूर करवा लेनी चाहिए।
हाँ, कुष्ठ रोग के एक से अधिक प्रकार हैं आयुर्वेद में सभी त्वचा रोगों को कुष्ठ के अंतर्गत कहा गया है। आयुर्वेद में 18 प्रकार के कुष्ठ रोग है। जिसमें आठ महाकुष्ठ और 11 क्षुद्रकुष्ठ हैं। एक्जिमा को आयुर्वेद में विचर्चिका नामक क्षुद्रकुष्ठ से तुलना की जा सकती है। फ़िलहाल मुख्य रूप से निम्नलिखित को कुष्ट रोग के रूप में जाना जाता है :-
तपेदिक कुष्ठ रोग Tuberculoid Leprosy :-
तपेदिक कुष्ठ रोग में, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अच्छी होती है। जो व्यक्ति इस संक्रमण की चपेट में आता है उसे केवल कुछ घावों से जुड़ी समस्या होती है। यह रोग हल्का होता है और केवल हल्का संक्रामक होता है।
लेप्रोमेटस कुष्ठ रोग Lepromatous Leprosy :-
लेप्रोमेटस कुष्ठ रोग होने पर रोगी की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया खराब हो जाती है। कुछ रोग का यह प्रकार त्वचा, नसों और अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। संक्रमित को नोड्यूल (बड़े गांठ और धक्कों) सहित व्यापक घाव हो जाते हैं। कुष्ठ रोग का यह रूप अधिक संक्रामक है।
सीमावर्ती कुष्ठ रोग Borderline Leprosy :-
सीमावर्ती कुष्ठ रोग में, तपेदिक और लेप्रोमेटस कुष्ठ रोग दोनों की नैदानिक विशेषताएं होती हैं। इस प्रकार को अन्य दो प्रकारों के बीच माना जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्रभावित त्वचा क्षेत्रों के प्रकार और संख्या के आधार पर कुष्ठ रोग को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया है जो कि निम्नलिखित है :-
पहली श्रेणी पॉसिबैसिलरी (Posibacillary) है। पांच या उससे कम घाव हैं और त्वचा के नमूनों में कोई जीवाणु नहीं पाया गया है।
दूसरी श्रेणी मल्टीबैसिलरी (Multibacillary) है। पांच से अधिक घाव हैं, त्वचा की धुंध, या दोनों में जीवाणु का पता चला है।
यह संभव है कि कुष्ट रोग होने पर रोगी को कई जटिलताओं का सामना करना पड़े। क्योंकि कुष्ठ रोग के लक्षण बहुत देरी से दिखाई देते हैं और शुरुआत में इसके लक्षण बहुत ही आम नज़र आते हैं जो कि किसी त्वचा संबंधित समस्या या गठिया की समस्या जैसे प्रतीत होते हैं इसी कारण इसका निदान होने में एक लंबा समय लगता है। जब कोई व्यक्ति कुष्ठ रोग की चपेट में आता है तो उसे निम्नलिखित जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है :-
विरूपता
बालों का झड़ना, विशेष रूप से भौहों और पलकों पर
मांसपेशियों का लगातार कमजोर होना
बाहों और पैरों में स्थायी तंत्रिका क्षति
हाथों और पैरों का उपयोग करने में असमर्थता
नाकबंद होना और नाक सेप्टम का पतन होना
आइरिटिस (ऑंखों के एक परदे) की सूजन
ग्लूकोमा की बीमारी होना
अंधापन होना या बहुत कम दिखाई देना
स्तंभन दोष (ईडी)
महिला और पुरुष दोनों को बांझपन होना
किडनी खराब होना या किडनी संबंधित समस्याएँ होना
कुष्ठ रोगी को किन समस्याओं का सामना करता है? What problems does a leprosy patient face?
कोढ़ की बीमारी सदियों से ही समाज में किसी कलंक के भांति ही समझा गया है। अगर किसी व्यक्ति को कोढ़ की बीमारी हो जाती है तो उसे एक तरफ तो शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है बल्कि उसे कई सामाजिक और मानसिक स्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। कुष्ठ रोग होने पर व्यक्ति को मुख्य रूप से निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है :-
समाज से बहिष्कार
नौकरी के अवसर न मिलना
एक साथी खोजने में कठिनाई
खुद को अलगाव और हाशिए का शिकार पाना
बेकार की भावना पैदा होना
आत्महत्या के विचार आना
समाज पर खुद को बोझ समझना
कोढ़ की बीमारी का निदान कैसे किया जा सकता है? How can leprosy be diagnosed?
एक बार जब कुष्ठ रोग के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देने लग जाए तो इसका निदान करना आसान हो जाता है। अगर आपको लगता है कि आप कुष्ठ रोग से जूझ रहे हैं तो सबसे पहले आपको अपने अंदर कुष्ठ रोग के लक्षणों की पहचान करनी होगी और यह भी ध्यान रखना होगा कि लक्षण कितनी गति से बढ़ रहे हैं और लक्षण कब से दिखाई देना शुरू हुए हैं।
एक बार जब आप अपने अंदर लक्षणों की पुष्टि कर लेते हैं तो उसके बाद आप इस बारे में कुष्ठ रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से मिले और उन्हें इस बारे में विस्तार से बताएं। लक्षणों की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर आपको जरूरी जांच करवाने के लिए कह सकते हैं। डॉक्टर आपको बायोप्सी करवाने के लिए कह सकते हैं, जिसमे त्वचा या तंत्रिका के एक छोटे टुकड़े को हटाकर परीक्षण के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
कुष्ठ रोग के रूप को निर्धारित करने के लिए आपका डॉक्टर एक लेप्रोमिन त्वचा परीक्षण भी कर सकते हैं। डॉक्टर कुष्ठ रोग पैदा करने वाले जीवाणु की एक छोटी मात्रा को इंजेक्ट करेंगे, जिसे त्वचा में निष्क्रिय कर दिया गया है, (आमतौर पर ऊपरी बांह पर)। जिन लोगों को ट्यूबरकुलॉइड या बॉर्डरलाइन ट्यूबरकुलॉइड कुष्ठ रोग है, वे उन्हें इंजेक्शन स्थल पर सकारात्मक परिणाम का अनुभव हो सकता है।
कुष्ठ रोग का उपचार कैसे किया जाता है? How is leprosy treated?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी प्रकार के कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए 1995 में एक मल्टी ड्रग थेरेपी विकसित की है जो कि यह दुनिया भर में मुफ्त में उपलब्ध है। भारत में भी केंद्र सरकार कुष्ठ रोग का मुफ्त उपचार देती है। आपको बता दें कि भारत सरकार ने वर्ष 2005 में भारत को कुष्ठ रोग मुक्त देश घोषित किया था।
कुष्ठ रोग में डॉक्टर आहार का खास ख्याल रखने और नशे से दूर रहने की सलाह देने के साथ-साथ निम्नलिखित एंटीबायोटिक भी दे सकते हैं :-
डैप्सोन (एक्ज़ोन)
रिफैम्पिन (रिफैडिन)
क्लोफ़ाज़िमिन (लैम्प्रीन)
मिनोसाइक्लिन (मिनोसिन)
ओफ़्लॉक्सासिन (Ocuflux)
डॉक्टर कुष्ठ रोगी को एक ही समय में एक से अधिक एंटीबायोटिक लिख सकता है। अगर कुष्ठ रोगी को सूजन की समस्या ज्यादा है तो वह रोगी को एस्पिरिन (बायर), प्रेडनिसोन (रेयोस), या थैलिडोमाइड (थैलोमिड) जैसी कोई सूजन-रोधी दवा लेने की सलाह भी दे सकते हैं। यदि कुष्ठ रोगी गर्भवती हैं या हो सकती हैं तो उन्हें थैलिडोमाइड कभी नहीं लेनी चाहिए। यह गंभीर जन्म दोष पैदा कर सकता है। कुष्ठ रोग का उपचार महीनों से लेकर वर्षों तक चल सकता है। लेकिन फिर भी यह कहना संभव नहीं है कि कुष्ठ रोगी को इस गंभीर रोग से हमेशा के छुटकारा मिलेगा।
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